एकमॆळि

रचयिता कॊंकणी भाषा प्रचार सभॆचॊ पूर्व अध्यक्ष दिवंगत कवि श्री कॆ अनन्त भट्ट
(यॆ प्रबन्ध तिरुमलदॆवस्वं उच्चविद्यालयाचॆ १९६७ वर्षाची प्लाटिनम जूबिलि स्मरणिकान्तु प्रकाशन कॆलॆलॆ मणु कृतज्ञतासहित कळैताय)

सकलानीय एक मनान राबून एक कार्य कॊरचाक  एकमॆळि मणताय। अमचान्तु एकमॆळि तरी अस जल्यार  अमचान करूक जावनत्तिलॆ  कसलॆय कार्य असचना। अमी कॊरचॆ कार्यान्तु कसलॆय प्रतिबन्ध आयलारीय  एकमॆळि मळॆलॆ एक ब्रह्मास्त्र पूरॊ प्रतिबन्ध सर्वॆय निवारण करूक। आज आमी वड वड  कसलॆय कार्य सफल जावुन आमचॆ दॊळमुखार पळैताय जल्यार  तॆ कार्य एकमॆळि असतना तॆं सफल जालॆलॆ मणु मनांत कॊरका जावुन अस । एकलान एक काम कॊरचॆ अपणाली शक्ति आनि युक्ति गॆवुन कॆल्यार तॆ काम पुरतॆ जावयात अथवा कसलॆय प्रतिबन्ध एवुन पुरतॆ जावनतीलॆं  राबुयात। जल्यारीय  जायत जनानी मॆळून तंगॆलि शक्ति आनि युक्ति काडून काम कॆल्यार तॆ काम पुरतॆ जावुन ताजॆ  फल सन्तॊषप्रद जत्तलॆ मळॆलान्तु कांय संशयु  ना। 

अमचान्तु एकमॆळि असतना अमका क्रमान उन्नति मॆळॆलि जावनूय अमका  एकमॆळि ना जावंचाक अमगॆलि बलहीनतॆचॊ लाभ काडुन  विदॆशि जनानि अमचॆ शासन कॆलॆ जावनूय भारतवर्षाचॊ इतिहासु  पळॆलार अमका मनांत जत्तलॆ। भारतदॆशाचॆ रायांक एकमॆळि ऊणॆ जावुन एकमॆकान जघडूक आरंभु कॊरचाक इंग्लीषकारानि त्या बलहीनतॆचॊ चांग उपयॊग कॆल्लॊ। ताजॆ फलस्वरूप जावुन  भारताचॆ शासन विदॆशी लॊकालॆ अधीनांतु पावलॆ। तशि जल्यारीय हांगाचॆ जनान्तु  एकमॆळि वाडून सकलानीय एकमनान राबून अमका स्वातन्त्र्य मॆळका मळॆलॆ कार्याचॆ खातीर  प्रयत्नु कॆलॊ। त्या पसावत आमका स्वातन्त्र्य मॆळॆलॆं  सर्वॆय जाण  जलॆलॆ कार्य त। कॆदणाय सूर्याक  अस्तमन नातीलॆ साम्राज्याचॆ थकून  दॆशाचॆ स्वातन्त्र्य समाधानपूर्वक परतून गॆवंचॆ भारी प्रयासाचॊ काम आसीलॊ। तशी प्रयास असतनाय जनपद  एक मनाचॆ- एकमॆळीन- जावंचाक अमगॆलॆ स्वातन्त्र्य  अमका परतून  मॆळॆं।

अतां 'एकमॆळि' मळॆलॆ शब्दाक एकता अथवा ऎक्यमत्य  मणूय मणताय। एकमॆळी विषयान्तु उलौंचॆ वॆळार जाति, मत, वर्ग इत्यादिकाचॊ  भॆदु काणु दूर दवॊरका जावुन अस। एक दॆशाचॆ जन एक घरकडचॆ आनि परस्पर भावंड जाताय। एक घरकडॆचॆ भावंडांक एकमॆकाक  स्वल्प जघडीं  अस जाल्यारीय घरकडॆचॆ कसलॆय चांग कार्यावॆळार तॆ जगडॆ विसॊरनु एकमॆळीन  तॆ कार्य करताय। तांका एकमॆकाक स्वल्प जघडॆं अस मणु सजीवसारांक कळॆनाय। तशीच दॆशाचॆ अभिवृद्धिचॆ चांग कार्यान्तु अमी एकमॆळीन मुखार सॊरका जावुन अस। १९६२ वर्षा चीनदॆशान  अमचॆ उपरि आक्रमण  करतना  अमी एकमॆळीन प्रतिकरण कॆलॆं। १९६५ वर्षा पाकिस्तानलॆ आक्रमणाचॆ वॆळॆरीय अमी एकमनाचॆ जावुन तांका धावंडालॆ।

ह्यॆ सन्दर्भार माका स्कूळान्तु सिखतना वाचिलि सानि काणि उडगास एता। एक कर्षकाक चार पड्डॆ असीलॆ। तॆ पड्डॆ पॊट भॊरुन खाण खावुन वडलॆ पसावत  भारी हृष्ट पुष्ट असीलॆ। तॆ पड्डॆ  एकमॆळीन  लगीचॆ रनान्तु तोण खावंचाक  दिसदिस वत्तालॆ। त्या रनान्तुलॊ एकु वाघु पड्यांक पळॊवनु तांका खावंचाक आग्रह करतलॊ जालॊ। थॊर अनी पुष्ट जावनसिलॆ तॆ पड्यांक पळॊवनु वाघालॆ तॊण्डान्तु उदाक अयलॆ। जल्यारीय तॆ पड्डॆ एकमॆळीन एकच स्थायार  लगलगी भॊवुन तोण खातालॆ। त्या पसावत तो वाघु  पड्यांचॆर आक्रमण करुन मारुन खावंचाक मुखार सरलॊना।  हाक्का कारण कित्तॆं मळार एक पड्याक  ताणॆ आक्रंन कॆल्यार शॆष तीन पड्डॆ मॆळून  वाघाक मारून लॆहार करतलॆ। तगतगॆलॆ प्राणाचॆ भय  सकळांकॆय अस नवॆ। तॊ वाघु पड्यांक खावंका मळॆली आशा मनांतु दवरून दीस कडतल जालॊ। रनांतु यथॆष्ट खाण खावुन तॆ पड्डॆ  दॆहान भारि थॊर आनि बलवन्त जालॆ। ह्यॆ पळॊवुन कर्षकालॆ मनान्तु  वडु सन्तॊषु जालॊ। दॆहान पुष्ट असीलॆ तॆ पड्डॆ  कर्षकालॆ कृषिकार्यान्तु चांग सहाय करतल जालॆ। 

जल्यारि एदॆ दिसपळतांतु वचतना तॆ पड्यांलॆ मनान्तु अहंभाव  एतलजालॊ। एक पड्यालॆ मनान्तु माका शॆष पड्यांचॆ पसी चड बल अस  मळॆलि भावना आयली। तॆ चारीय पड्यांचॆ एकमॆकालॆ  मनान्तु हॆंच गर्व आयलॆ। मॆजॆ समान बलवन्तु अमचान्तु वॆगॊळॊ ना मणु  तान्तुलॆ प्रत्यॆक पड्याकॆय दिसलॆ। रनान्तु तांचॆ लागी वाघु एवनतिल्याक कारण मॆगॆलॆ बल पळौनु भीवनु अस्सी मणु  प्रत्यॆक पड्यान लॆकिलॆ। ह्यी धारणा मनान्तु  एवतना तॆ पड्डॆ प्रत्यॆक कार्यान्तूय हांव मुखार हांव मुखार मणु जघडतल जालॆ। तांका परस्पर  असीलॆ जघडॆं तांगॆली एकमॆळि नाशु करूक कारण जालॆ। 

असी एकमॆळि ना जलॆलॆ तॆ पड्डॆ रनान्तु तोण खावंचाक एकसाणि वचॆ सॊणु वॆगळ वॆगळॊ जावुन वचाक शुरु करतल जालॆ। एकच रनान्तु तानी वॆगळ वॆगळॆ स्थयार तॊण खावंचाक शुरु कॆलॆ। ह्यॆ प्रकारान तॆ पड्यानि वॆगळ वॆगळॆ जावुन भॊवंताय जालॆ- ‘वटॆन वॊचॆ वाघा तू माका एवुन खागा’ जालॆ। रनान्तुलॊ तॊ वाघु पड्यांक खावंचाक संदर्भु पळॊवनु भॊवंतालॊ। पड्डॊ एकलॊच तॊण खाताल पळॊवनु ताजॆ गॊवंटॆर उडकी मारली। वघालॊ गासु सॊडौंचाक पड्यान जायत प्रयत्नु कॆलॊ। मळार पाप! तागॆलॊ प्रयत्नु निष्फल जालॊ। वाघान ताका मारुन खॆलॊ। शॆष पड्डॆ विंगड विंगड स्थायार तॊण खातालॆ पसावत ताजॊ सहाय करूक पावलॆना। जल्यार त्या कर्षकालॊ कष्टकालु मणु सांगका। सात-आठ दीस भित्तॆर त्या वाघान चारीय पड्यांक एकॆक जावुन मारून खॆलॆ।

कवीलॆ उत्तर सत्य जालॆ। ऎक्यमत्यान शक्ति मॆळता ना जल्यार नाशु पावंता।

(सांगिली सानि काणि चॆरडुवांक मात्र नयी मलगडांकॆय सारांशाचि जावुन दिसता। एकमॆळिचॆ उद्भवस्थान अमगॆलॆ मन तं। मनांतु स्थायु अस जल्यार मचुवान्तु स्थाय अस मणु संगताय। एकमॆळि जावंका मणु अमी मनान्तु उद्दॆशु कॆल्यार मात्रतं अमका एकमॆळि मॆळूक साध्य जत्ता। ऎक्यमत्य तरी अस करूक असाध्य जावनसिलॆ कार्य जल्यारीय साध्य जत्ता। ह्यॆ तत्व भारतीयांक चांग जावुन कळता)

।समाप्ति।

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