कॆरळचॆ कॊंकणी साहित्य

कॆरळचॆ कॊंकणी साहित्य
लॆखिका श्रीमति एस. यमुना बाई एम. ए., कॊच्ची
(आभार AISCO III Conference 1974 Souvenir)

कॊंकणी कॊंकण दॆशाची भास। कॊंकणीचॆ कुळार वॆदभास। गॊयान्तूलॆ जन ही भास उल्लैतात। कारवार थाकून कन्याकुमारी पर्यन्त ह्या भासॆची प्रचार असा। हांगाचॆं जन ह्या भासॆच्या प्रचार विषयान्तु भारी प्रयत्न पावंतात। जाल्यारि भिन्न भिन्न प्रदॆशान्त उल्लौंच्या कॊंकणीन्त दॆश भॆद दृष्टि पडता। ह्या दॆश भॆदाच्या आधारारि कॊंकणी भासॆक मंगलूरी, कारवारी, सष्टी, कॊड्याली, बारदॆशी, आन्द्रूसी- ह्या प्रकारी प्रादॆशिक भॆद आस्सात। हान्तु त्या त्या दॆशान्तु उल्लौचीं भासॆचीं पदां मॆळनु आसात। अशी कारवारी, मंगळूरी कॊंकणीन्तु कर्नाटक भासॆचीं पदां मॆळनु आसात। तशीचि गॊयान्त उल्लौंची कॊंकणीन्त मराठी आनी पॊरतुगाली शब्द मॆळनु आसात। ह्या दॆश भासांतु लवलवी साहित्य आसा।

कॆरळ दॆशाची भास कैरळी अथवा मलबारी। ही भास साहित्याचॆ प्रमाणी आनी भासॆचा प्रमाणी खूब वाडल्या। कॆरळच्या कॊंकणी भासॆन्तु खूब मळबारी उत्तरां मॆळतात दॆकून त्या कॊंकणीक कॆरळची कॊंकणी अथवा कैरळी कॊंकणी मणतात।

ह्या भिन्न भिन्न प्रादॆशिक कॊंकणी भासांतु अनॆक प्रसिद्ध साहित्यकार आसात। लूयिस मसकरानस मंगलूरी कॊंकणीचॊ व्हॊड नांव पाविल्लॊ कवि। कॊड्याली कारवारी कॊंकणीन्तु चित्रापुर मठाधिपति श्री पांडुरंग आश्रम आनी श्री आनन्दाश्रम शान्तानायक स्वामी, नारायणतीर्थ, मंजॆश्वर गॊविंद पै, शान्ताराम कामत, दिनकर दॆशाय आदि प्रशस्त कवि आनी बरौपी आसात। कॊंकणीचॆ व्हड व्हड साहित्यकार आन्द्रूसी कॊंकणीन्तुआसात।स्वर्गस्थ वारदॆ वालवलॆकर ‘शणै गॊयंबाब’, पद्मश्री बाकीबाब बॊरकर, रवीन्द्र कॆलॆकर, रामचन्द्र नारायण नायक आदि। डा. मनॊहर सरदॆशाय प्रॆंच भासॆचॊ महान पंडित आनी कवि।

आतां हांव हांगा कॆरळ कॊंकणींतुल्या बरौप्यां पासुण थॊडॆ मटार सांगया मणु लॆकता। कॊचीचि स्वर्गीय आमुलक्का शॆणाय (१८५१-१९०२) कैरळी कॊंकणीची प्रथमली कवयित्री खंय। कॊची आमगॆल्या दॆवळांतु भांगरान निर्माण कॆलॆलॆ गरुड वाहन आसा। अशी सुन्दर एक शिल्पकला सृष्टि भारतांतु ना मणू संगुयात। ह्या गरुडवाहनाचॆ पासून आमुलक्कान एक सुंदर कविता रचील्या। ही कविता गिंताचॆ रूपान कॊचीचॆ संगीतप्रिय जन आजीय गायन करतात। कॆरळची कॊंकणीन्तु हरिकथा साहित्य खूब आसा। हाजॊ बरौपी अंचिकमळचॊ स्वर्गीय पी नारायण नरसिंह पै (१९७८-१९५९)। हाणी चॆल्लय्या चरित्र, कुचॆलॊपाख्यान, प्रह्लाद चरित्र, कुचॆलॊपाख्यान, द्रौपदी वस्त्रापहरण, सती सक्कू बाइ ह्यॆं कथाकाव्यांचॆ निर्माण कॆल्यांत। हीं काव्यां हरिकथॆचॆ रूपान जनपदाक आजीय अतिप्रिय जावनु आसा। चॆरायीचॊ स्वर्गीय कवि पद्मनाभ वाध्यारान लघुस्तॊत्ररत्नावली मनू एक स्तुतिकाव्य बरैल्यां। कायंकॊळची श्रीमति जी कमलम्माळ (१९००-) कॊंकणी साहित्याचॆ विषयान्तु अभिरुचि गॆवंचॆ
जनांतु गद्य आनी पद्य निर्माण कॆल्या। जाल्यारिै ही कॊंकणीची नवीन कवयित्री मणु नांव पावल्या। रघुरामायण, पात्र चरित हाणी रचिल्लॆं दॊनि काव्य ग्रंथ।
बी गणॆश प्रभु कण्णूर (१९०२-) सी नारायण मल्ल्या कॊची (१९१२-१९६६), श्रीमति वॆदवती शॆणाय आलप्पी -हांणीय कॊंकणी भासॆंतु बरैलॆलासा। सुमित्रा बाय, परवूर, माणिक्का बाय आलुवा, विमला मल्ल्या कॊची- हांणी कॊंकणी साहित्याच्या श्रीवृद्धिचॆ खातिर श्रमु कॆला।
पळ्ळिपुरम गांवचॊ श्री रामचन्द्र शर्मा (आर सी शर्मा) (१८९६-) कॆरळांतु कॊंकणी भासॆचॊ सर्वश्रॆष्ठ कवि मणु सांगुयात। हांका अंग्रॆजी, बंगाळी, हिंदी, संस्कृत, मलबारी ह्यां भासांतु अपार पाण्डित्य आसा। शर्मा मलबारी भासॆंतुलॊ श्रॆष्ठ बरौपी। कॊंकणी गान मंजरी हॊ काव्य समाहारु बरौनु कॊंकणी भासॆक सुंदर कविता करची ताकत आसा, हॆं दाखौन दिल्लां। ह्या काव्यग्रंथावॆलॆ भजनगीत कॊंकणीजनांक बहुप्रिय आसात। भक्तिरस प्रधान हॆं भजनगीत आमकां कृष्णाचॆरि ध्यान दीवनु मन एकाग्रतॆरि हाडतात। कृष्णा, तुजॆ चरणकमल माका शरण अशी प्रारंभु जावंचॊ भजन गींतु कळनातिलॆ कॆरळांतुलॆ सारस्वत समुदायांतु आसचना। ई. सं १९४४ वर्षा श्वर्गस्थ जालॆल्या आल्पळैचॆ वामन बाळमाम, आलवायचॆ जनार्दन कामतमाम आनी तलशॆरीचॆ डा. नागॊजी रावमाम- हांचॆ पासून श्री शर्मान एक विलाप काव्य बरैलां। शॊकरसप्रधान ही कविता शर्मालॊ काव्य रचनाचॊ सुन्दर नमूनॊ जावनु आसा।
कॆरळच्या सारस्वत समुदायाक ह्या बुद्धिवन्त, धर्मनिष्ठ, उदार आनी परॊपकारी महान पुरुषांली मृत्यूचॆ खातीर पावलॆलॆं दुःख आनी हृदयव्यथा- तॆंदॊनीय संक्षिप्त जावनु सुंदर पदानि कवि शर्मा ह्या विलाप काव्यांतूल्यान घडॊवनु दाखयता।
कॊचीचॆ श्री अनंत भट आतंचॆ उदीयमान कॊंकणी कवि।
जाल्यार आमगॆल्या भासॆक एक विशाल संपन्न साहित्य ना। कॊंकणि भासॆक अशी
एक संपुष्ट साहित्य, काणी, कविता, उपन्यास, नाटक आदि साहित्याचॆ अंग निर्माण कॊरनु हाडका। तॆं कॊंकणी बरवप्यालॆ काम आनी कर्तव्य। जाल्यार आमगॆल्या भाव-भावंडांक हान्तु अभिरुचि ऊणॆ जावनु दृष्टि पडता। बाकी सर्वॆय कार्यान्तु आसूच्यावरी हान्तूय आमगॆलॊ प्रयत्नु जावका। साहित्य निर्माणाक जावंका जलॆली बुद्धि, भावना, शक्ति, वैभव इत्यादि आसिल्लॆं तरुणवर्ग आमगॆल्यान्तु अप्रूप नंय। इतर साहित्यान्तु ग्रंथरचना कॊरनु नांव पाविल्लॆ सारस्वतां कॆरळांतु सुमार आसात। तांचॆ लागी ही प्रार्थना करता-
“भावानॊ आनी भयिण्यानॊ धैर्यान मुखार एवनु कॊंकणी भास आनी साहित्य वडौंचाक प्रयत्नु कराय। सत्साहित्य करूक श्रमु पावांय। मळबारी, अंग्रॆजी, हिन्दी, कर्नाटक, मराठी ह्यॊ भासॊ शिकचाक आमी बारू प्रयत्नु काडताय। ताजॊ शतवंट्यांतुलॊ एक वांटॊ श्रमु पुणीय आमी आमगॆलॆ मातृभासॆच्या पॊषणाक पावनाय जाल्यार तुतलॆं लज्जावह दूसरॆं कांय आसवॆ? अन्य भासांतु अतिविशिष्ट साहित्यॊपहार कॊरनु त्या भासांच्या पायांकडॆ भक्तीन अर्पण कॆल्यारीय तानि तॆं हॊय मणु दीवना। जाल्यार एक सानु साहित्यॊपहारु आमगॆल्या कॊंकणी भासा दॆवील्या पायांकडॆ भक्तिभावान अर्पण कॆल्यार तीका अतिसंतॊषूय आमका व्हॊडु अनुग्रहूय आत्नसंतृप्तीय जातली। ह्या प्रकारी कॊंकणीभासॆक मनान पॊषण दीवनु वडैलारि त्या भासॆच्या जनपदाकय मान्यता मॆळतली। ताकाजावनु भाषाप्रॆमी आमका प्रयत्नु प्रारंभु कॊरया।”

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