A Valuable Pick from the Abandoned Archives

।।अज्ञानतमसा नष्टदृशां मार्गप्रदर्शकं  बौधरश्मिभिरुद्दीप्तं नमामि गुरुभास्करम्।।

आजि अमका पूजनीय जावनश्शिलॆ श्रीकाशीमठाधिपति श्रीमत्सुधीन्द्रतीर्थस्वाम्यालॆ पवित्र सन्निधानान्तु कॊंकणी मातृभाषाविषयान्तु १० धा मिनिट् समयु पर्यन्त भाषणाक जावनु मक्का क्षण कॆल्लॆलॆ कॊंकणी भाषा प्रचार सभॆक कृतज्ञता सांगूनु आपण्यालॆ भाषण आरंभु करता।

हॆ मान्य सज्जनानॊं,अम्मी अधिवासु कॊरनु यॆवंचॆ ह्यॆ लॊकाक मनुष्यलॊकु मणु नांव पॊडूक कारण अनॆक प्राणिवर्गान्तु दॊवॊरनु मनुष्यवर्गाक प्राधान्य सिद्धजालॆल्यान तां। इतर प्राणिवर्गान्तु दॊवॊरनु प्रज्ञाधिक्य अनिक तन्मूलक जावनश्शिलॆ भाषाव्यवहारहॆतून मनुष्यवर्गाक प्राधान्य सिद्ध जल्लॆं। मनुष्य जीवित आरंभुथकून अवसान पर्यन्त भाषामय तां। मनुष्याक आद्य जावनु अवसूलगी थकून भाषाज्ञान प्राप्त जांवचॆ कारणान त्या भाषॆक मातृभाषा मणु सांगताय। उत्तरॊत्तर अधिकाधिक ज्ञानार्जनाक उद्दॆशु कॊरचॆ मनुष्याक ज्ञानार्जन अपण्यालॆ मातृभाषॆचॆ मार्गान सुलभ नय। त्या पसावत जिज्ञासु जावनश्शिलॆ मनुष्यानि प्रथम जावनु अपण्यालॆ मातृभाषॆचॆं परिशीलन कॊरका। त्यानन्तर स्वकीय मातृभाषॆचॆ पदांचॆ लगी अन्यभाषॆंची पदां तुलन कॊरनु परिशीलन कॆल्यारि इत्तूलि भाषा जल्यारीय परिशीलन कॊरुक साध्यतां। स्वमातृभाषॆकॆय तत्संबन्धि जावनश्शिलॆ साहित्याकॆय अवगणन कॊरनत्तीलॆं अपण्यालॆ अवसूवरीच बहुमानकॊरका जल्लॆलॆं एकॆक मनुष्यालॆय कर्तव्यतां। अमगॆली मातृभाषा कॊंकणी मणु अम्मि सर्वॆय जाणॆय जल्यारीय तज्जॆं साहित्यगवॆषणान प्राप्त जल्लॆलॆं फल संक्षिप्त जावनु सूचन करता।

१) संज्ञा
कॊंकणी भाषॆचॆ शास्त्रीय नामकरण गॊमन्त प्राकृत मणुतांॊमन्त कॊण प्रदॆशाक कॊंकण मणु प्राकृत संज्ञॆन व्यवहारु करताय। संस्कृतप्रकृतीन्तु थकून विकारपरिणामान गॊमन्तप्रदॆशवासि भारतीयांलॆ व्यवहारसंबन्धान गॊमन्तप्राकृत अथवा कॊंकणी भाषा उदॆयली।
गौमन्तं च महाराष्ट्रं शौरसॆनं च मागधं।
अपभ्रंशं च पैशाचं प्राकृतानामयं गणः।।
ह्यॆ प्राकृतविषयक आर्षवाक्यान गॊमन्तप्राकृत अतिप्राचीन मणु विदित जत्ता।

२) लिपि
गॊमन्तप्राकृत संस्कृत विकार मणलॆ एक कारणान संस्कृताची स्वकीय नागरी लिपि गॊमन्तप्रकृताची अर्थात् कॊंकणी भाषॆची सहज लिपि मणलॆल्यान्तु संशयु ना। जल्यारि मनुष्य तांगॆलॆ सौकर्याक जावनु रॊमानि, अरबि, कर्णाटक, मलयाळं इत्यादिक बरपान्तूय कॊंकणी बरैताय जावनु दिखूक
यॆता। जल्यारीय दॆवनागरीक सॊडून इतर सर्वॆय लिपियो त्या भाषॆक परकीय लिप्यॊं मात्रतां। कॊंकणीभाषॆची सहज बरपाचॆ वॆळा दॆवनागरीलिपिचॆ स्वर-व्यंजन-मात्रा-संयॊग रूप अक्षरमालॆचॊ उद्घाटन मुहूर्तु अत्तां हंगा एकत्रित जल्लॆलॆ महाजनसमक्षान्तु अमगॆलॆ गुरुवर्य श्रीस्वाम्यालॆ करकमलान्तु थकून सिद्ध जाल्ला। अम्मि सर्वानीय हज्जॆ अनुसरण करनु कॊंकणी मातृभाषाचॆ साहित्याचॆ उत्तरॊत्तर अभिवृद्धि कॊरनु जहाडका मणु मॆगॆली विनयपूर्वक प्रार्थना।
नमॊ महद्भ्यः।

(This is a reproduction of a written speech found in the Sabha’s archives. Neither the name of the person who made the speech, nor the day on which it was made is found in the manuscript. The occasion, it is understood from the text, was the release of Konkani Aksharamala by the Srimad Sudhindra Thirtha of Kasi Math. The handwriting indicates with a degree of certainty that it is of none other than ‘Guruji’ Sri N Anantha Sharma Sastri, the eldest brother of our Honorary Secretary)

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