लॆखक दिवंगत कवि साहित्य अकादमी पुरस्कार जॆता श्री अनन्त भट्ट
(ह्यॆ लॆखन सभॆलॆ १९८१ मै मासाचॆ कॊंकणी विकास नावॆंचॆ त्रैमासिक पत्रिकॆंथकून काडून पुनःप्रकाशन )
महाभारतान्तु कथापात्रांगलॆ स्वभावानुसार बरॆं अनी वायट जावनु तांगॆलॆ चित्रीकरण कॊरनु संगला। पाण्डवान्तु मलगडॊ युधिष्ठिर मणु नांव घॆतनाची धर्मु पालन कॊरचॆ एक चांग कथापात्राचॆ चित्र अमगॆलॆ मनांतु यॆत्ता। तशीचि कौरवान्तु मलगडॊ दुर्यॊधन मणु आयकतनाचि तागॆलॊ वायट स्वभावु अनी करणीं आमका उडगासु यॆत्ता। मानवजीवनान्तु स्वभावाक हॊड प्राधान्य अस्सा। मनुष्यांगॆलॊ दामु दुड्डु गॆल्यारि कांय वच्चना, आरॊग्य गॆल्यारि थॊडॆ वत्ता अनी स्वभावु गॆल्यारि सर्वॆय वत्ता मणु गादो अस्सा। त्या पसावत स्वभावांतुलॆ वायटपण सॊडनु बरॆंपण कॊरचॆ मानवांगॆलॆ कर्तव्य।
पाण्डवांगॆलॊय कौरवांगॆलॊय गुरु द्रॊणाचार्य। दॊगांकॆय एकच प्रकाराचॊ विद्याभ्यासु, धनुर्विद्या इत्यादि मॆळता। जल्यारि, तांगॆलॆ स्वभावांतु भारी भॆदु वरता। एक दिवसा द्रॊणाचार्य युधिष्ठिराकॆय दुर्यॊधनाकॆय अपॊवनु त्या प्रमाणॆ तंगॆली परीक्षा करता। सुरवॆक दुर्यॊधनालगि सांगता- वयरॆ दुर्यॊधना ह्यॆ जगान्तु चांग मनुष्य कॊण कॊण अस्सति मणु तंगॆलीं नांव बरौनु तय्यार कॊरनु मक्का दीवंका । तशीच युधिष्ठिराक सांगलॆं-युधिष्ठिरा तूंवॆ ह्यॆ जगतान्तु वायत मनुष्य कॊण कॊण अस्सती मणु तांगॆलीं नांव बरौनु तय्यार कॊरनु मक्का दीवंका। द्रॊणाचार्यान तॆं काम कॊरूक तांका दॊगांकॆय एक मासाचॊ वॆळु दिल्लॊ। तीं दॊगॆंय जायत गुरुदॆवा मणु द्रॊणाचार्यालि आज्ञा गॆवनु गांव गांवांतु भॊवंचाक बायर सरलॆ।
दुर्यॊधनु लॆकतालॊ- प्रत्यॆक मनुष्यान्तु कांय पुणॆय वायट स्वभावु आस्स। वायटपण दिसतना मॆगॆलॆ चांग मनुष्यांगॆलॆ चिट्यान्तु बरौंचाक तसलॊ कोण ना।
युधिष्ठिर लॆकता- प्रत्यॆक मानावांतु कांय पुणॆय चांगु स्वभावु दृष्टि पडता। चांगपण आसतना मॆगॆलॆ वायट मनुष्यांलॆ चिट्यांतु बरौंचाक नांव एक जल्यारीय दिसना।
दॊगानीय ह्या प्रमाणॆ एक मासाचॊ वॆळु काडलॊ। त्यानन्तर दॊगॆंय द्रॊणाचार्यालॆ मुखार पावलॆ।
द्रॊणाचार्यान निमगीलॆ- वय रॆ, तुमी मॆगॆलॆ आज्ञानुसार बरॆं वायट मनुष्यांगॆलॆं नांव बरौनु हाडलॆ वॆ?
दॊगानीय एकस्वरान जाप दिल्ली- ना गुरुदॆवा।
द्रॊणाचार्यु मणता- कसल्याक? तुमी मॆगॆली आज्ञा पालन कॆल्ली वॆ? तुमका एक मासाचॊ वॆळु दिल्लॊलॊ मु।
दुर्यॊधन मणता- गुरुदॆवा, हांवॆ प्रत्यॆक व्यक्तीलॆ विषयान्तु सॊद्दुन कांय पुणै वायटपण तांच्यांतु मॆळनु मॆगॆलॆ चिट्यॆरि बरौंचाक यॊग्य नांव एक सुदॊ मक्का मॆळनॆय।
युधिष्ठिरूय कळैता- गुरुदॆवा प्रत्यॆक मनुष्यांतु मक्का चांगु स्वभावु दिसून वायट जनांतु बरौंचाक यॊग्य नांव मक्का मॆळनॆय। क्षमा कॊरका।
ह्यॆं आयकून द्रॊणाचार्य सांगता- हांवॆ तुमगॆलि परीक्षषा कॆल्लॆलि। तांग तंगॆलॆ स्वभावानुसार अ दुसरांतु वायटपण अथवा बरॆपण दिसता। बरॊ मनिष्यु अन्य जनांगॆलॆ वायटपण लक्ष्य कॊरनत्तीलॆं तागॆलॆंबरॆपणपळैता। तशीचि वायट मनिष्यु अन्यालॆं चांगपण पळैना, वायटपण सॊद्दून भौवंता।
जनांगॆलॆं वायटपण सॊद्दूचॆ नंय, चांगपण सॊद्दून तॆं स्वीकार कॊरचॆ अमगॆलॆ कर्तव्य।
Interesting! There is good and bad in everything and everyone around us. But ultimately the concept of ‘good and bad’ comes down to our perspective as there is nothing purely good nor purely bad.