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धर्मोपदेशदशकम्

गोमन्त प्राकृतान्तु धर्मोपदेशु। आलस्याक सोणु तुम्मि कर्मधीर जय्याय।  सत्यधर्मपालनान  स्वीय कर्म कराय॥१॥ छिन्नभिन्न जावनु तुम्मि नष्ट्भ्रष्ट जावनकाय । तज्जे हज्जे पाय

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अश्रुबिन्दु

(पल्लिपुरं गांवचॊ साहित्यकार स्वर्गीय श्री रामचन्द्र शर्मान ह्यी कविता तॆलिच्चॆरिचॊ डाक्टर वी नागॊजी राव, अलॆप्पी गांवचॊ बी वामन बाळिगा अनि

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प्रार्थना

जय जगदीशा लोक उद्धारक तुजे सन्तानांक देवा राक सगळीय सृष्टि तुगेलि माया तुजे वास विना व्यर्थ ह्यी काया । जय

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