Poems

धर्मोपदेशदशकम्

गोमन्त प्राकृतान्तु धर्मोपदेशु। आलस्याक सोणु तुम्मि कर्मधीर जय्याय।  सत्यधर्मपालनान  स्वीय कर्म कराय॥१॥ छिन्नभिन्न जावनु तुम्मि नष्ट्भ्रष्ट जावनकाय । तज्जे हज्जे पाय

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