(१९६७ अक्टॊबर दॊनि तारिकॆक मुंबयीन्तु चमकिलॆ अखिल भारत कॊंकणी परिषदॆन्तु कॊच्चि कॊंकणी भाषा प्रचार सभा संस्थॆचॆ कार्यदर्शी एन पुरुषॊत्तम मल्यानि वाचिलॆ प्रबन्ध। ह्यॆ प्रबन्ध सभॆचॆ स्वर्ण जुबिली स्मरणिकॆन्तु प्रकाशन कॆलॆलास)
आजि भारतान्तु १९६१ लॊकपरिगणनानुसरण चौदा लक्षालगी जन कॊंकणी भास उल्लैयताय। सिन्धि जल्यारि लगीचि भास कॊंकणी। गॊंय, मैसूर, दक्षिण महाराष्ट्र, बॊंबै, कॆरळ इत्यादि प्रदॆशान्तु अनॆक लॊकु कॊंकणी उल्लैतायि। अनिक त्या त्या दॆशाचॆ प्रादॆशिक भॆदाक धॊरनु व्यतस्त रूपान कॊंकणी उल्लौनु यॆत्तायि। ह्यान्तु शुद्ध कॊंकणि खंयचि मॊणु प्रश्नु यॆत्ता। जल्यारि एक भाषॆचॆरि यॆंवचॊ प्रादॆशिक भॆदु आजि कालि असुचॊ नयि। अनॆक सहस्र वर्ष फुडॆ धॊरनु भाषॆचॆरि प्रादॆशिक भॆदु अशिलॊ जावनु दृष्टि पडता।
संस्कृत भाषॆचॊ महापंडित पाणिनि संगतात संस्कृत भाषॆन्तु तकाक शब्दु तक्रं त। जल्यारि सौराष्ट्र मणलॆल्या दॆशान्तुलॆ थयंची स्त्रियॊ तक्रं मणु उच्चारण करतात। तॆ दॊनियि शब्द व्यतस्त मणु काडचाक नज्ज। कित्याक? शब्दॊच्चारण भॆद प्रादॆशिक मणलॆलॆ नियमान्तु पडतात। खंयचॊ शब्दु शुद्ध अनिक खंयचॊ अशुद्ध मणु प्रश्नु यॆनात। ह्या प्रकारी कॊंकणि भास एक एक प्रदॆशाम्तु त्या प्रादॆशिक भॆदाक धॊरनु व्यतस्त जावनु रावता। कॊरचाक मणु कॊच्चि प्रदॆशान्तु उल्लैतना गॊयान्तु करपाक मणु उल्लैतात। उच्चारणाचॆ भॆदाक धॊरनु शुद्ध कॊंकणी खयंची ह्यॆ प्रश्न यॆनात। कारण हिन्दुस्थानांतुल्या सर्वै भाषॆंची आवॆय भास जावनु असूचि संस्कृत भासॆचॊ व्याकरणकारि पाणिनि प्रादॆशिक मणलॆल्या नियमाक धॊरनु भाषारूढि सिद्ध करता। त्या निमित्ति कॊच्चि, मंगलूर, कुमठा, गॊंय इत्यादि प्रदॆशांतु मूल शब्दु एकु एकूच असून व्यतस्त रूपान उच्चारण कॊरून यॆंवची ती कॊंकणी भास आमी सर्वानीय स्वीकार कॊरका अनिक एकवित जावनु रावचाक पळौका। अमगॆलॆ एक करतव्य अस जनांक सर्वांकॆयि मनांत जावचॆ शब्द पुञ्जावनु काडचॆ अनिक एक एक प्रदॆशान्तु चालून नत्तीलॆ कॊंकणी शब्दु पुञ्जावनु कॊरचॆ अनिक टिप्पणि दीवनु बरौंचॆ। कॊंकणी भाषॆन्तु भाषावाङमयान्तु सर्वॆय भाषॆचीय आवसु जावनु असूचि संस्कृताक धरचॆ अनिक भाषॆक पुष्टि हाडचॆ।
गवॆषणाथकून मॆळता कॊंकणी एक प्राकृत भास तां मणु। डाक्टर डलगाडॊ सांगतात कॊंकणी भास सारस्वत मणलॆलॆ आर्य जनांथकून गॊमंत दॆशान्तु तन्नि अधिवास कॆलॆलॆ पसावत उद्भव जावनु आयलि तस्सली भास तां मणु। पञ्जाबान्तु पूर्वकालाक सरस्वति प्रदॆशान्तु अधिवासु करनु राबिल्या तांगॆली भासॆंथकून परिवर्तन जावनु कॊंकणदॆशाचॆ सहवासान कॊंकणि मणलॆल्या नामरूपान आजि ह्या नामुन्यारि ती राब्बली। सरस्वतितीरारि आर्यजनां राबुन यॆतना पूर्व एक कालाक (पौराणिक कालाक) जलप्रळय जल्लॊ। डा. वूळि तनी कॆलॆलॆ उत्खननांथकून कळता पुरावृत्त जलप्रळय याथार्थिक तं अश्शिलॆ मणु। मात्र नय सुमार वर्ष तॊ प्रदॆशु दुर्भिक्षान्तु पडलॊ। त्या निमित्तिं थंयचॆ आर्यजनां घर शाळ इत्यादिक सॊडुन पूर्व दिक्कारि वत्तलजालॆ अनिक त्रिहॊत्र मणलॆल्या राज्यान्तु वॊचून थयंचॆ जनांभर्सि तंगॆल आचारु संस्कारु इत्यादिक संरक्षण कॊरनु सुमार काल राब्बिलॆ। त्या कालाक त्रिहॊत्रपुरान्तु मागधी प्राकृत प्रादॆशिक भाषॆयजावनु अश्शिली पञ्जाब दॆशांथकून त्रिहॊत्रपुरांतु रब्बिलॆ आर्यजनां तन्नि उल्लौंची मागधी भाषॆक उच्चारणंतु पैशाची मणलॆलल्या प्राकृताचॊ प्रभाव पडलॊ। कित्याक? पञ्जाब दॆशांतु उल्लौनु यॆंवची भास पैशाची अश्शिली। त्या पसावत पैशाचीच्या प्रभाव युक्त जावनु मागधी भास त्रिहॊत्रपुरांतु रब्बिलॆ आर्यजनां तंगॆली आवय भास जावनु मणलॆली प्राकृत उल्लौनु आयलीं।
डा. तारापुरीवाला तांगॆल्या एलमॆन्ट ऒफ सायिन्स ऒफ लान्ग्वॆजस् , कल्कत्ता यूनिवॆर्सिटि मणलॆल्या ग्रन्थान्तु पंजाबी, काश्मीरी, नॆपाळी इत्यादि भास पूर्व कालाक उल्लौनु अश्शिलि पैशाचि प्राकृतांथकूनु परिवर्तन जावनु अयिल्यॊ भासॊ तॆं। जल्यारि दक्षिण दॆशान्तु कॊंकणी भासॆक पैशाचीचॊ प्रभाव अस्स मणु सिद्ध कॊरचाक प्रमाण दिखू पडता। उदाहरण दामॊदर मणलॆलॊ संस्कृत शब्दु पैशाचीन्तु अनि कॊंकणीन्तु दमदॊर जत्ता। मागधी प्राकृताची परिवर्तन भास कॊंकणी मणलॆल्यान्तु संशयु ना। आम्र मणचॊ संस्कृत शब्दु मागधीन्तु अनि कॊंकणीन्तु अंबॊ मणु संगतात। गवॆषणांथकून मॆळता आजि अमी उल्लौंची कॊंकणि भास अन्य कसलीय भास नय मागधी अनि पैशाचीप्राकृताची एक मिश्र भास तां। पौराणिक अनि वैदिक संस्कृताचॊय प्रभाव कॊंकणीक अस्स।
द्यॊततॆ लू इत्यादिक वैदिक संस्कृतान्तु अस्सुचॆ शब्दु कॊंकणीन्तु उज्जॊ, लूयि अस्सि प्रचलित अस्स। मराठीन्तु धुवॆक मुलगी मणतना कॊंकणीन्तु धुव मणतात। संस्कृतान्तु तॊ शब्दु दुहिता; अहं मणचॊ संस्कृतशब्दु कॊंकणीन्तु हांव अथवा हंव मणु जल्लॊ। गुजरातीन्तु तॊ शब्दु हूं कच्चान्तु आंव मणतात।मराठीन्तु तॊ शब्दु मी आशि अस्स। ह्या प्रकारी विशॆषरीतिरि संस्कृतशब्दु मराठीन्तु उच्चारताना कॊंकणी मराठीचि उपभास कॆदप जायत ना। कॊंकणी भास शब्दकॊशान्तु दरिद्री नयीं। कॊंकणीक कॆवल एक पदान विषय व्यक्त कॊरूक जत्तना मराठीन्तु दॊन शब्दाचॊ सहायु जावंका जत्ता। उदाहरण नज्ज मणलॊलॊ शब्दु मराठीन्तु हॊत नाहीं अनीक मड्डॊ मणचॊ कॊंकणी शब्दाक मराठीन्तु नरलाचॆ झाढ मणतात। मराठी अनि हिन्दी भासॆन्तु प्रकृति अथवा विषयाचॆ लिंगाक वर्तमान कालाक क्रियापदाचॊ प्रभाव पडता। जल्यारि वर्तमान कालारि कॊंकणीन्तु विषयाचॆ लिंगाक क्रियापदानुसार परिवर्तन यॆना। उदाहरण हांव वत्ता मणु कॊंकणीन्तु उल्लैतना स्त्रीजन हिन्दीन्तु मैं जाती हूं अनीक मराठीन्तु मी जातॆ अशी मणतात। पुरुषजन हिन्दीन्तु मैं जाता हूं अनीक मराठीन्तु मी जातॊ मणु उच्चारतात।
कॊंकणीक चड सादृश्य मराठीचॆ पसी संस्कृताचॆरि अस्स। आपय मणचॊ शब्दु संस्कृतान्तु आह्वय मराठीन्तु बॊलाव, करय शब्दु संस्कृतान्तु कारय, मराठीन्तु करीव। प्राचीन कालाक आर्य जनानी नित्य आवश्यक जावनु अशिल्या पदार्थ संस्कृतभासॆक धॊरनु उदक मणु उच्चारण कॊरनु घॆवंचॊ तॊ शब्दु उदाक मणु कॊंकणीन्तु चालून असतना मराठीन्तु पाणी मणतात। ज्ञानॆश्वरी ग्रन्थांतु असूची पद अनीक आधुनिक मराठीन्तु उल्लौंची पदां व्यतस्त रूपान दृष्टि पडतात। व्यतस्त असूचॆ तॆ शब्द कॊंकणी भाषॆचॊ सादृश्य जावनु दृष्टि पडतात। त्या खातीर भाषाविज्ञानी पण्डितां अभिप्रायु पांवताय कॊंकणी भास जूनि मराठी तं मणु। ती एक स्वतन्त्र भास नय। गवॆषणांथकूनु मॆळता ज्ञानॆश्वरीचॊ निर्माता ज्ञानॆश्वराक कॊंकणीभाषॆचॊ प्रभाव पडलॊ अस्स। त्या खतीर ताणॆ उल्लौंची अनीक बरौंची मराठीक कॊंकणीचॊ सादृश्य पडलॊ अनीक कॊंकणी पदां ज्ञानॆश्वराल्या मराठीन्तु आयलीं। कॊंकणी जूनि मराठी नय मणु सिद्ध करूक ज्ञानॆश्वरान प्रयॊगान्तु हाडलॆल्या शब्दांथकून मॆळता। इंगाळॊ मणचॊ कॊंकणी शब्दु ज्ञानॆश्वरीन्तु असतना मराठीन्तु निखारा मणतात त्याचॆ प्रमाणी संस्कृतान्तुलॊ श्वान शब्दु कॊंकणीन्तु अनीक ज्ञानॆश्वरीन्तु सूणॆ मराठीन्तु कुत्ता। त्याचि प्रकारी संस्कृतशब्दु सॊपान कॊंकणीन्तु अनि ज्ञानॆश्वरीन्तु सॊपण आनि मराठीन्तु जिना पयरी अशि मणतात। तशीचि ज्ञानॆश्वरिन्तु अनि कॊंकणीन्तु असूचॆ तण, सांत इत्यादि पदांक मराठीन्तु घास, चार अशि सादृश्य नत्तीलीं पदां दृष्टि पडतात।
कॊंकणीन्तु क्रमवाचकाचॆ संख्यॆचॆ अंतिमाचॆरि ओकारु दवरल्यारि संख्यावाचक जत्ता। पाली प्राकृतान्तु मॊकारु दवॊरनु सप्तमॊ अठमॊ मणतना कॊंकणीन्तु सत्तवॊ आठवॊ मणतात। मराठीन्तु सातवा आठवा अशी उच्चारतात। तत्सम, तद्भव अनीक दॆश्य पदां स्वीकार कॊरचॆ नियमान्तु कॊंकणीक अनिक मराठीक समानता ना। उदाहरण द्वितीय विभक्ति मराठीन्तु घरास मणतना कॊंकणीन्तु घराक अनिक हिन्दीन्तु घराकॊ मणतात। चतुर्थि विभक्ति मराठीन्तु घराला मणतना कॊंकणीन्तु घराक अनिक हिन्दीन्तु घरकॊ मणु उच्चारतात।ह्या प्रकार कॊंकणी व्याकरण नियमानुसरणान्तु मराठी थकून भॆद दखॆयता। डा. आर. काळ्डवॆल
इत्यादि भाषा विज्ञानि पंडितांगॆलॆ अभिप्रायानुसार एक भास वॆगळी एक भासॆची आवय भास जावंका तरी अस्स ती पदां रूपान्तु मात्र नय व्याकरण नियमान्तूय पॊट भाषॆलगी सादृश्य दाखॊवंका। वाक्यरचनान्तूय कॊंकणी मराठीथकून वॆगळी रावता। मराठीन्तु दॊन रचनारुपां असतना कॊंकणीन्तु तीन रूपां दृष्टि पडतात॑ तिसरॆ रूप हंगा हांव बसलॊ मणचॆ तॆ वाक्य रचना रूपक मराठीन्तु मी बसलॊ आहॆ इकडॆ मणु चालूंत ना।
कॊंकणी भाषॆक निज लिपी दॆवनागरी मणलॆल्यांन काय संशय ना। जल्यारि ती एक एक प्रदॆशान्तु त्या त्या प्रदॆशान्तुल्या लिपीन बरौनू यॆतात। त्या खातीर अमी एक भाषॆचॆ असून परस्पर वॊळख मॆळनत्तीलॆ जावनु अस्सय। त्या खातीर सकळांकॆय स्वीकारु जावनु असूचि एक लिपि कॊंकणीक जावंका। सिन्धिभाषॆक दॆवनागरी नन्तना दुसरी लिपि यॊग्य जायतना। एक सासु ॲठशी चवाळीस (१८४३) क्रिस्ताब्दान्तु इंग्लीषकारानी सिन्धप्रदॆश धरलॆलॆ कालाक सगळांकॆय स्वीकारु जावनु आश्शिलि एक निज लिपि सिन्धी भाषॆक नशीलि। मुसलमान लॊकु अरबी लिपि अनि हिन्दु लॊकु दॆवनागरिथकून उद्भव जल्लीलि नवी नमून्यारि अस्सूचि हिन्दु सिन्धि अथवा बन्या लिपि अशी नावाची भिन्न भिन्न लिपीन सिन्धी भास बरौनु यॆत्तालीं। काप्टन जॊर्ज स्टॆक हैदराबाद सिन्ध कलॆक्टर ह्यानीं नागरीन बैबिळ सिन्धि भाषॆन्तु अनुवाद कॆल्लॊ। मात्र नय दॊन निघंडु इंगलीष-सिन्धि अनिक सिन्धि-इंग्लीष अशि रचिल्या अस्स। जल्यारि दॆवनागरि लिपि त तानि प्रयॊग कॆल्ला। तॆचि नमुन्यारि कॊंकणी भाषॆकय नागरि लिपि त काड्ल्या। जॊण विल्ल्यम कारॆ हानी एक सासु अठशी आठ (१८०८) क्रिस्ताब्दान्तु कॊंकणी नागरि बर्पान बैबिळ अनुवाद कॆलॊलॊ अस्स। एकसास नवशी एकसाठ इन्द्या सॆन्ससान्तु लांग्वॆज टॆबिळान्तु चारशिंबारावॆ पॆजान्तु बरैलॆलॆ अस्स। विल्ल्यम कारॆ ह्यानीं कॊंकणी बैबळ बरौंचाक स्वीकारु कॆलीलि लिपि दॆवनागरि त। एक सास पैंशी एकसाठवॆ शकसंवत्सरान्तु डच्च लॊकानि कॊंकणी भाषॆक बरौंचाक दॆवनागरि लिपि स्वीकार कॆलि। डच्च गवर्णर वान रीढ सैबालॆ औषधींचॊ हॊरतूस इनडिकस मलबारिकुस मणलॆल्या ग्रन्थाक निदर्शन पत्र दिलॆलॆ कॊच्चीचॆ अप्पु भट्ट, विनायक पंडित, रंग भट्ट नावांचॆ तीन कॊंकण्यानीं नागरि लिपीन त कॊंकणी बरौंचाक काडली। ह्यॊ विवरू आंस्टरडामांथकून क्रिस्तीय १६७८ वर्षान्तु प्रकाशित कॆलॆलॆ ग्रंथांथकून मॆळता।
हिन्दुस्थानान्तु प्रथम जावनु दॆवनागरि ब्लॊक प्रिन्ट कॊंकणीन तां। बाराव शताब्दीन्तु कॊंकण दॆशान्तुल्या सिलहरा रायाल्या शिला लॆखनान्तु कॊंकणी बरैली भास जावनु दृष्टि पडता। शिला लॆख ह्या प्रमाणि वचता। अत्तां तुझॆ कॊणु रै शाशन लिपी तॆज्या वैद्यनाथ दॆवाचि बाळ……. इत्यादि। जल्यारि कॊंकण दॆश इतर रायाल्या हाथान्तु गॆलॆल्यान कॊंकणीक रायालॊ साहायु मॆळॊलना। अनिक कॊंकणीचॆ विकासाक स्तंभनावस्था आयली।
भारताचॆ कॆन्द्र सरकाराचॆ मलगडॆ मन्त्री जावनु आश्शिलॆ स्वर्गीय जवहरलाल नॆह्रु लॊकसभॆन्तु प्रश्नॊत्तर जावनु एक कालाक सांगतालॊ कॊंकणीची लिपी नागरि…। परतुगीसानि गॊयान्तु १६८४ क्रिस्ताब्दान्तु कॊंकणीन उल्लौंचॆ अनिक बरौंचॆ निरॊध कॆल्लॆं। जल्यारीय कॊंकणि जिवन्त राबलि। झा कम्मिट्टीन १९६२ मय मासान्तु कॆन्द्रसरकाराक शुपार्शी कलॆल्या प्रमाणी कॊंकणी नागरीन शालॆन्तु शिक्कौंचाक काडची लिपि।
साहित्यान्तु कॊंकणीक दारिद्रपण आठौंचॆ चूकितां। मक्का मॆळॆलॆ सूचकांथकून कळता की मैसूर, बंबॆ, कॆरळ इत्यादि प्रदॆशान्तुलॆ कॊंकण्यानी दॊन सास पुस्तकावयिर साहित्यनिर्माण कॆलॆलॆ अस्स मणु। श्रीयुत रवीन्द् कॆळॆकार हानीं प्रकाशन कॆलॆलॆ बिब्लियॊग्राफि मणलॆल्या पुस्तकांथकून कळता कॊंकणीक एक सासु पैंशी पुस्तकां अस्स अनी तज्जी संख्या तानि दिलॆलास्स। कारवारचॆ स्व. एस सिल्वा हांगॆल्या लॆखनांथकून मॆळता कॊंकणीक चौवीस शब्द कॊश अनिक एक्कूणीस व्याकरणग्रंथां अस्स मणु। प्रॊ. रामचन्द्र शंकर नायक हानी ३८००० शब्दांचॊ शब्दकॊश बरैलॊ जावनु सूचक मॆळ्या। फादर स्टीफन हानी कॊंकणीचॆ प्रथम व्याकरण बरैलॆं तॆ व्याकरण हिन्दुस्थानान्तु प्रथम जावनु प्रकाशित कॆलॆलॆं व्याकरण। अनि प्रथम प्रति गॊयान्तु रायतूर मणलॆलॆ स्थलारि १६४० क्रिस्ताब्दान्तु छापिलॆं। कॊंकणी भाषा मण्डल संस्थॆन नवावी कॊंकणि परिशदॆक आस्पद जावनु अक्टॊबर एक तारीकॆक कॊंकणी पुस्तकांचॆ प्रदर्शन बॊंंबॆचॆ गॊवन इनहस्टिट्यूट् हाळान्तु बॊंबॆ नगराद्यक्ष डा. लियॊन डिसूसा हानि उद्घाटन कॆलॆल्यांथकून विवरण मॆळता की हंगा कॊंकणी पुस्तकांक जावनु आख्यायिका दॊनशॆंछसत्तर (२७८) नाटक तीनचाळीस (४३) कविता संग्रह पन्नास (५०) मतविषय पुस्तकां दॊनीशॆंसत्तावन पाठपुस्तकां पंचाशी (२८५) सामन्य विज्ञान पुस्तकां तीनचाळीस (४३), व्याकरण एकावन (५१), शब्दकॊश सॊवीस (२६), वार्ता अनीक मासिक एक्याणव (९१) अस्सय।
तुर्की, मुगळ, अफगान,पारसी, इरानी इत्यादि विदॆश जनानीं हिन्दुस्थानान्तु स्थिर वासु कॆलॊ अनिक तंगॆली मूल भास तॆ बिसरलॆ। आज तॆ हिन्दुस्थानी, पारसी इत्यादि भास उल्लैताय। जरूसलॆमान्तुलॆ जूतावीं कॊच्चीन्तु एवनु रब्बूनु मळबारी उल्लैतात। जल्यारि कॆरळ, गुजरात, मैसूर, महाराष्ट्रा इत्यादि दॆशान्तु इतर जनां भरसी कॊंकणी जनां अनॆक वर्षां रब्बूनूय तंगॆली मातृभास बिसरलॆनाय। अन्य भाषॆक कॊंकणी भास ना करूक जल्लॆना। मात्र नयीं अन्य भासॆचॆ प्रभाव कॊंकणीप्रत्ययाचॆरि पडलॆना।
मॆगॆलॊ ह्यॊ दृढ निश्चय तां अमगॆलॆ भाषॆचॆरि अश्शिलॆ स्वाभाविक मर्दन कॆदनाय राब्बना। कॆदाणकी अधीन अथवा अधःपतित अश्शिली तसली भास उल्लौवंचॆ मनुष्य जग्गॆ जत्ताय त्या वॆळॆरि तॆ सृष्टिक्रमाचॆ विरुद्ध अश्शिल्या दांपणाक निकळावून उडॆैताय। अनि तॆ त्या भाषॆक साहित्य निर्माण कॊरनु तिका चांग प्रमाणी एक स्थान दिवंचाक प्रयत्नु पांवताय। ह्या खातीर तां अखिल भारत कॊंकणी भाषा परिषद स्थापन जाल्या अनि ह्या मुंबय नगरीन्तु सम्मॆळित जाल्या। ह्या परिशदॆन्तु निर्णय करुक काडचॊ चारित्रिक जावनु अश्शिलॊ ह्यॊ विषयु विजयप्रद जत्तलॊ। अमची कॊंकणी भाषा भारताचॆ घटनान्तु आठवी परिशिष्टान्तु घालून ती एक वॆगळी भास मणु तिका मान्यता मॆळची अशी ह्यॆ परिशदॆमुखॆल थरायनी जात्तली। कॊंकणी भाषा प्रचार सभा संस्थॆन कॊंकणी एक स्वतन्त्र भास मणु सिद्ध कॊरचॆ विषयान्तु हॊडु प्रयत्नु काडलॊ अस्स। कॊंकणी भाषा मंडल, गॊय अनीक बंबय ह्यॊ संस्थॊ कॊंकणीक साहित्य निर्माण कॊरनु पुष्टि हाडचॆ खातीर निरन्तर प्रयत्नु पावनु यॆत्ताय। त्या संस्थानी निर्माण कॆलॆलॆं पुस्तकां गॊयान्तहु शालॆन्तु शिकैताय अनिक लगीचि कॆरळ प्रैमरी शालॆन्तु शिक्कॊवंचॆ मणु कॆल्या। कॆरळान्तु शिक्कौंचॆ खातीर अमका सरकाराली आनुमति मॆळिलास्स।
कॊंकणि भास स्वतन्त्र भास मणु कॆन्द्रसरकारान स्वीकारु कॆल्यार अमकां स्वतन्त्र भारतान्तु इतर जनां भरसी स्वतन्त्र भाषाजन मणु अभिमान पावयात। संशय ना तॊडॊवु जावनत्तिलॆं भारताच्या घटनॆंतु आठवॆ शॆड्यूळान्तु कॊंकणीक एक स्थान मॆळतलॆं।
एक विषय मक्का ह्या परिशदॆक कळॊवंचा अस्स कित्तॆ मणल्यारि कॊंकणी भाषा प्रचार सभा कॊच्ची संस्थॆन प्रमाण युक्त जावनु अस्शिल्लॆ कॊंकणीक मान्यता मॆळचॆ खातीर श्रीमति इन्दिरा गान्धीक अनीक भारताचॆ गृहमन्त्रालयाक समर्पण कॆलॆली अभ्यर्थना पत्र कॆन्द्र सरकारान विचारणॆक काडलॆ अस्स। सिंधी भाषॆक घटनॆन्तु काडचॆ विषयीं कॆन्द्रसरकाराक शुपार्शी कॆलॆल्या भाषान्यूनपक्ष कम्मीषणरानी सभॆन तांका दिलॆल्या अभ्यर्थनापत्राक आधारधॊरनु कॊंकणीक घटनॆन्तु काडचॆ विषयीं कॆन्द्रसर्कारालागी पत्र व्यवहार आरंभिलॊ अस्स। मैसूर सरकाराल्या अभ्यर्थनाथकीत हांव महाजन कम्मीषनाचॆ मुखार एप्रिल विसावॆ तारीकॆक बंगलूर नगरान्तु हाजर जल्लॊ अनिक कॊंकणि एक स्वतन्त्र भास मणु सत्तर पॆज अस्सिलॆ प्रमाण युक्त एक मॆमॊराण्डं सादर कॆलॆं अनिक जस्टीस महाजनान मक्का विस्तार कॆलॆल्यान्तु हांवॆ त्यांगॆल्या मनांतु तृप्ति हाडली की कॊंकणी मराठीचि एक पॊट भास नय मणु। अमका पत्र मुखॆल अयकूक पडता जस्टीस महाजनान कॆन्द्र सर्काराक समर्पण कॆलॆल्या रिपॊर्टान्तु सांगिलॆ अस्स कॊंकणी एक स्वतन्त्र भास तां मणु।
मुंबय नगरीन्तु सम्मॆळित जल्लॆलॆं हॆं परिशद पळौनु मक्का हॊडु संतॊष जत्ता की आज अम्मी सर्वॆंय ह्या नगरीन्तु भारत संस्कारान सिन्धि इत्यादि भासॆक मान्यता दिलॆल्या नमुन्यारि कॊंकणीकॆय मान्यता दींवका ह्यॆ खातीर विचारण कॊरचॆ विषयीं सम्मॆळित जल्लॆ मणु। भावीन्तु अम्मि सर्वानीय एकमित जावनु राबचॆ। कॊंकणी भास विसरी जावनु अश्शिल्या कॆरळ कॊंकणी जनांक कॊंकणी भाषा मण्डल मुंबय नवावी कॊंकणी परिषदॆन्तु आमन्त्रण दिलॆल्या निमित्ती तुमी आपैल्या ह्यॆ परिशद सर्वॆय कॊंकणी लॊकाक प्रतिनिधित्व करता। त्या पसावत ह्या परिशदॆन निर्णय कॊरचॆ, अर्थात कॊंकणीक दरबारी भास जावनु कॆन्द्रसरकाराकरान संगॊवंचॆ, ह्या प्रयत्नान्तु आम्मि सर्वॆय विजय पावंतलॆ। मॆगॆली आशातां सरकार तडॊवु जावनतिलॆ अमगॆली आवय भास कॊंकणी भास स्वतन्त्र जावनु काडचॆ विषयीं धरलॆली मंदगति सॊडतलॆ अनिक लगीच सिंधीक मान्यता दिलॆला प्रकारी कॊंकणीकय भारत सरकार दरबारी भास जावनु प्रख्यापन करतलॆ मणु।
Huge respect and gratitude for N. purushothama mallaya for his dedication, hard work and struggle for Konkani language!
Thankyou Sabha for making this article available online.
If we think before we speak and write it becomes easy to filter out the words which have entered the language by local influence.
And as rightly stated in this essay, instead of fighting for what is right and wrong it would be better to include those words which can be understood by everyone or including footnotes. Finding a middle ground is necessary!